श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों में आदर्श नेतृत्व की अवधारणा का अध्ययन

एक कुशल एवं आदर्श नेतृत्व की जरूरत विभिन्न क्षेत्रों में है। आज समय की मांग आंदोलनकारी नेताओं की नहीं, बल्कि ऐसे लोक शिक्षकों के नेतृत्व की है जो जन मानस में जागरण का आलोक उत्पन्न करने का अनवरत् प्रयत्न करने में अथक रूप से लगे रहें। आक्रोश में तोड़-फोड़ हो सकती है व आंदोलन व आवेश विक्षोभ पैदा करते है...

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Bibliographic Details
Main Authors: Krishna Jhare, Megha Pal
Format: Article
Language:English
Published: Dr. Chinmay Pandya 2015-01-01
Series:Dev Sanskriti: Interdisciplinary International Journal
Subjects:
Online Access:http://dsiij.dsvv.ac.in/index.php/dsiij/article/view/50
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author Krishna Jhare
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description एक कुशल एवं आदर्श नेतृत्व की जरूरत विभिन्न क्षेत्रों में है। आज समय की मांग आंदोलनकारी नेताओं की नहीं, बल्कि ऐसे लोक शिक्षकों के नेतृत्व की है जो जन मानस में जागरण का आलोक उत्पन्न करने का अनवरत् प्रयत्न करने में अथक रूप से लगे रहें। आक्रोश में तोड़-फोड़ हो सकती है व आंदोलन व आवेश विक्षोभ पैदा करते हैं। ऐसे में सृजन संभव नहीं। सृजन के लिए सघन अध्यवसाय चाहिए। सर्वसाधारण के लिए विकास-उत्थान के साधन जुटाना कोई आसान कार्य नहीं हैं, फिर पतन के गर्त में द्रुतगति से गिरने वाले जन मानस को उलट देना तो और भी कठिन है। इस दुष्कर कार्य के लिये तो कोई अत्यंत प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व ही चाहिये। आचार्य श्रीराम शर्मा उन्हीं में से एक हैं। वे स्वयं तो एक आदर्श नेता बनकर जिए, साथ ही उन्होंने अनेकों में इस क्षमता को जाग्रत भी किया। प्रज्ञापरिवार की संरचना, युग साहित्य का सर्जन तथा विश्वविद्यालय स्तर की प्रशिक्षण क्षमता का परिचय देने वाले, आचार्य श्रीराम शर्मा ने कोटि-कोटि मनुष्यों को प्रेरणा, प्रकाश, अभ्युदय, ज्ञान व विज्ञान से भरपूर बनाया है। इतना ही नहीं, दलदल में फँसे हुओं को उबारा और इस योग्य बनाया कि वे अन्यान्यों को भी सहारा दे सकें। ऐसे नेतृत्व कर्ता ने नेतृत्व के स्वरूप को उसी कौशल के साथ स्पष्ट किया है। नेतृत्व के आधार रूप में वे कुछ ऐसे तत्वों को प्राथमिकता देते हैं, जिनके माध्यम से समस्त समाज का नवोन्मेष संभव हो सके जैसे-समय की मांग (के प्रति समझ), समर्थ समाधान तथा नये मूल्यों की स्थापना। इन मूल्यों की प्राप्ति हेतु आचार्य श्रीराम शर्मा ने प्रमुख सोपान बताए हैं-विवेकशीलता, प्रामाणिकता, कत्र्तव्यपरायणता एवं साहसिकता। इन आयामों के माध्यम से आचार्य जी के विचारों में वर्तमान समय के लिए एक आदर्श नेतृत्व की अवधारणा सामने आती है। A skilled and ideal leadership is required in various domains. Today, the demand of the time is not of the extremist leaders, but of the leadership of such earnest teachers, who are relentlessly engaged in making persistent efforts to sow the seeds of awareness among the masses. There can be sabotage in anger and agitation that can create disturbances. Creation is not possible in such a situation. It requires intensive study for creation. It is not an easy task to raise the means of development and upliftment for the common man, then it is even more difficult to reverse the masses that have fallen rapidly. For this difficult mission, only some remarkable personality is needed. Acharya Shriram Sharma is one of them. He himself lived as an ideal leader, as well as he awakened this ability among many of the people. Acharya Shriram Sharma has awakened  inspiration, light, abhyudaya, knowledge and science among the people through introducing Pragyaparivar, creating the literature of the era and the training ability of the university level. Not only this, he recovered those trapped and enabled them to support others as well. Such a leader has articulated the nature of leadership with the same skill. As a foundation of leadership, they give priority to such elements through which the transformation of the whole society becomes possible, such as the understanding of time, capable solutions and establishment of new values. To achieve these values, Acharya Shriram Sharma has laid out the main steps - rationality, authenticity, virtuousness and courage. Through these dimensions, Acharya ji's ideas bring out the concept of an ideal leadership for the present time.
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श्रीराम शर्मा आचार्य के विचारों में आदर्श नेतृत्व की अवधारणा का अध्ययन
Dev Sanskriti: Interdisciplinary International Journal
Aadarsh Netritva
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