बौद्ध दर्शन में वर्णित साधना पद्धति

साधना आत्मिक प्रगति का आधार है। साधना की तीन प्रणालियाँ मानी गई है- कर्म, ज्ञान और भक्ति। बुद्ध के अनुसार शरीर को दंड देने की अपेक्षा ज्ञान प्राप्ति से और ध्यान साधना के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त हो सकता है। बौद्ध साधनाएँ ‘शील, प्रज्ञा और समाधि के रूप में ‘त्रिरत्न’ के नाम से भी जानी जाती हैं। बौद्...

Full description

Bibliographic Details
Main Author: Nivedita .
Format: Article
Language:English
Published: Dr. Chinmay Pandya 2015-07-01
Series:Dev Sanskriti: Interdisciplinary International Journal
Subjects:
Online Access:http://dsiij.dsvv.ac.in/index.php/dsiij/article/view/67
Description
Summary:साधना आत्मिक प्रगति का आधार है। साधना की तीन प्रणालियाँ मानी गई है- कर्म, ज्ञान और भक्ति। बुद्ध के अनुसार शरीर को दंड देने की अपेक्षा ज्ञान प्राप्ति से और ध्यान साधना के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त हो सकता है। बौद्ध साधनाएँ ‘शील, प्रज्ञा और समाधि के रूप में ‘त्रिरत्न’ के नाम से भी जानी जाती हैं। बौद्ध साधनाभ्यास का आधार ‘शील’ है। क्योंकि बौद्ध साधना में शील सम्पन्न साधक ही समाधि का अधिकारी होता है। बौद्ध साधना ‘हीनयान’ व ‘महायान’ के रूप में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करती है। हीनयान केवल ‘निवृत्तिमार्ग’ है। उसकी सारी शिक्षा, समग्र साधना केवल एक आत्मा के निर्वाण को ही लक्ष्य बनाती है तथा महायान प्रवृत्ति मार्ग धर्म माना जाता है। महायान का मत है कि सभी मनुष्यों को उन्नति के योग्य बनाया जा सकता है। हीनयान ‘ज्ञान’ को प्रधानता देता है और महायान ‘भक्ति’ की विशेषताओं को स्वीकार करते हुए बुद्ध की मूर्ति-पूजा व अर्चना को स्थान देता है। महायान बौद्ध साधना में ‘शास्ता’ का ईश्वरीकरण कर दिया गया है। सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य में चित्तवृत्तियों के संयमन की कठिनाईयों का वर्णन प्राप्त होता है। चित्तवृत्तियों के सम्यक् नियंत्रणों के अभाव में ‘अमृतपद निर्वाण’ को प्राप्त करना असंभव है। बौद्ध आष्टांगिक मार्ग के अभ्यास द्वारा चित्तवृत्तियों के ऊपर नियंत्रण प्राप्त हो सकता है। जीवन को बुद्ध ने दुःखमय माना है, परन्तु शील के आचरण द्वारा नैतिक जीवन अपनाते हुए अवांछित दुःखों को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है। साधनाएँ ही दुःख निरोध में सहायक होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति सामान्य नैतिक नियमों का पालन करने लगे तो वह स्वयं के जीवन को तो सुखमय बनाएगा, साथ ही साथ समस्त विश्व सुखमय हो जाएगा क्योंकि मनुष्य मात्र में देवत्व विद्यमान है जिसे साधना द्वारा परिष्कृत किया जा सकता है। Sadhana is the basis of spiritual progress. Three systems of sadhana are considered - Karma, Jnana and Bhakti. According to Buddha, nirvana can be attained through the attainment of knowledge and practice of meditation instead of punishing the body. Buddhist practices are also known as 'Triratna' as 'Sheel, Pragya and Samadhi'. The basis of Buddhist practice is 'modesty'. Because in Buddhist practice, only a meditator with modesty is entitled to samadhi. Buddhist practice shows different perspectives in the form of 'Hinayana' and 'Mahayana'. Hinayana is only the 'Nivitra Marg'. All his education, holistic cultivation only targets the nirvana of a soul and is considered a Mahayana trend path religion. Mahayana believes that all human beings can be made capable of progress. Hinayana gives priority to 'knowledge' and gives place to idol worship and archana of Buddha by accepting the characteristics of Mahayana 'devotion'. In Mahayana Buddhist practice, 'Shasta' has been divinized. In the whole of Buddhist literature, there is a description of the difficulties of restraining the mind. It is impossible to achieve 'Amrita Pada Nirvana' in the absence of proper controls of the mind-states. The practice of the Buddhist ascendant path can gain control over the Chittavatras. Life has been considered sorrowful by Buddha, but the conduct of modesty can prevent unwanted sorrows from adopting a moral life. Practices only help in preventing grief. If every person starts following the normal moral rules, then he will make his life happy, at the same time the whole world will be happy because there exists divinity in mankind which can be refined by sadhana.
ISSN:2279-0578
2582-4589